यूं तो हर शख्स अपने अंदाज से जिंदग़ी बिताता है ,
जिंदग़ी जीना एक हुनर है जो किसी किसी को आता है ।
असलियत देखकर सब फेर ना ले आँखें उससे ,
आईना सबको अब मनचाहा अक्स दिखाता है ।
गर्दिश ए वक्त कुछ और कुछ हालात हुए हैं ऐसे ,
गुनाह क्यों न किए कल आज वो इसलिए पछताता है ।
मिले न दिल और ख्याल मुख़ालिफ है फिर भी ,
सब से मिलने की रवायत है मिलता जाता है ।
हम भी हो सकते थे शामिल इन हुक्मरानों में ,
बस हमें मौत का व्यापार नही आता है ।
जिसने खाई थी कसम राहों में बिछ जाने की ,
जाने क्यों आज वही राह की दीवार हुआ जाता है ।
छिड़ी है जंग एक मुझ में और ज़माने में ,
देखें अब कौन यहां किसको आज़माता है ।
मौत का खौफ भी अब मुझको क्यों कर होगा ,
रोज़ एक शख्स यहाँ जीते जी मर जाता है ।
मिलेगा तू भी इसी ख़ाक में एक ना एक दिन ,
फिर भला किस बात पर तू इतना इतराता है ।
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